Sunday, November 07, 2010

सकारात्मक सोच


स्वास्थ्य की कुंजी सकारात्मक सोच है। सोच और स्वास्थ्य एक-दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य की सोच का उसके स्वास्थ्य पर बहुत गहरा असर पड़ता है। इंसान जैसा सोचता है, उसका शरीर वैसी ही प्रतिक्रिया करता है। नकारात्मक सोच शरीर को अस्वस्थ बनाती है। प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है। सकारात्मक सोच शरीर को स्वस्थ और तनावमुक्त रखती है। ज्यादा सोचने से भूलने की प्रक्रिया विकसित होती है। इन दिनों हर वर्ग के लोग मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि इंसान की सोच प्रतिस्पर्धा और आगे बढ़ने की होड़ में उलझती जा रही है। नकारात्मक सोच से आत्मविश्वास कम हो जाता है और डर की भावना पैदा हो जाती है। इंसान अपने दिमाग का सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है। ऐसे में अगर सोच नकारात्मक होगी तो निःसंदेह दिमाग भ्रमित हो सकता है। अच्छी सोच से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। ठीक इसके विपरीत बुरी सोच से व्यक्ति हताशा और अवसाद से घिर जाता है। दरअसल खुशी से शरीर की धमनियाँ सजग और सचेत रहती हैं। सोच का सबसे ज्यादा प्रभाव चेहरे पर पड़ता है। चिंता और थकान से चेहरे की रौनक गायब हो जाती है। आँखों के नीचे कालिख और समय से पूर्व झुर्रियाँ इसी बात का सबूत हैं। शरीर में साइकोसोमैटिक प्रभाव के कारण स्वास्थ्य बनता है और बिगड़ता है। धूम्रपान, धूल, धुएँ के अलावा अस्वस्थ सोच से इंसान दिन-प्रतिदिन पीड़ित हो रहा है। मनुष्य अपने दुःख से दुःखी नहीं, दूसरों के सुख से ज्यादा दुःखी है। उसकी यह सोच अनेक रोगों को बढ़ा देती है। हमारे सोचने के ढंग को हमारा व्यक्तित्व भलीभाँति परिभाषित कर देता है, क्योंकि चेहरा व्यक्तित्व का आईना है।

शरीर पर रोगों के प्रभाव और सोच का गहरा संबंध है। अत्यधिक सोच के फलस्वरूप गैस अधिक मात्रा में बनती है और पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। सिर के बाल झड़ने लगते हैं शरीर कई रोगों का शिकार हो जाता है। अत्यधिक सोचने से असमय बुढ़ापा घेर लेता है। उच्च रक्तचाप हृदयाघात का कारण बनता है। शंका, रोग निवारण में अवरोध का काम करती है। रोग का निवारण रोगी के विश्वास से होता है, चिकित्सक की दवा से नहीं। दवा दी जा रही है, यह भावना अधिक काम करती है। नदियों का स्रोत यदि हिमालय है तो हमारे स्वास्थ्य का स्रोत हमारा स्वस्थ मन है। यदि व्यक्ति प्रतिदिन रात्रि में सोते समय सकारात्मक भाव से स्वयं को भावित करे, तो वह अनेक साध्य व असाध्य रोगों का सफल व स्थायी निवारण कर सकता है। स्वस्थ रहना आसान है और सोच को सकारात्मक रूप देना उससे भी आसान है। जरूरत है तो सिर्फ सकारात्मक रुख अपनाने की। सकारात्मक सोच से सेहत बनती है और नकारात्मक सोच अनेक मनोशारीरिक रोगों को जन्म देता है। अगर सोच को समय के साथ स्वस्थ रूप दिया जाए तो सोच की लकीरें चेहरे पर खिंच नहीं सकतीं। स्वस्थ व्यक्ति सकारात्मक सोच से हर चीज को देखता है, जबकि अस्वस्थ व्यक्ति की सोच नकारात्मक रूप से सामने आती है।

शरीर की बीमारियाँ सोच से प्रेरित होती हैं। ऐसे में अपनी सोच को सही दिशा देना या सोच को सीमित करना आज के युग में मुश्किल काम है। आसपास के वातावरण से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। केवल प्रकृति के समीप रहकर ही स्वस्थ रहा जा सकता है। मनुष्य का दिमाग और शरीर दोनों ही संतुलित रह सकते हैं। क्रोधित होने पर यदि व्यक्ति शीघ्र प्रसन्न हो जाए तो शरीर में होने वाले नुकसान से स्वयं को बचा जा सकता है। नकारात्मक सोच का प्रभाव बहुत जल्दी शरीर को रोगग्रस्त बनाता है। सकारात्मक सोच का प्रभाव बहुत ही धीमा होता है। लेकिन होता अवश्य है।

1 comment:

  1. soch our uske prbhav pr aapki post nihsndeh bhut upyogi hai . drasal ye bate log jante bhi hai lekin uske mahatv ko mahatv nhi dete hai jiska khamiyaja unhe kisi na kisi roop me bhugtna hota hi hai . skaratmk soch se hmare ird gird ka mahoul jane anjane hme urja deta hai isiliye is mansikta ki gunvtta ko bnaye rkhna bhut jroori hai .
    behtreen post ke liye bhut bhut bdhaai.

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