Tuesday, November 23, 2010

शिष्टाचार

विनम्रता एवं शिष्टाचार अंत:करण की अभिव्यक्ति है। शिष्टाचार सुसंस्कृत व्यक्तित्व का परिचायक है। शिष्टाचार का मूल मंत्र है-अपनी नम्रता और दूसरों का सम्मान। इस भाव का धनी व्यक्ति ही सभ्य और सुसंस्कारी माना जाता है। शिष्टाचार सर्वत्र सम्मानित होता है और अनायास ही अपने विश्वास एवं विनम्र व्यक्तित्व की छाप औरों पर छोड़ता है। विनम्रता मनुष्य का सर्वोपरि अलंकार है। बड़ों की प्रतिक्त्रिया तथा श्रद्धा-सम्मान मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल की अभिवृद्धि करता है। छोटों के प्रति स्नेहहित स्वर में शुभाशीष और बराबर वालों के प्रेमपूर्ण अभिवादन शिष्टाचार के यही मूल मंत्र हैं। जीवन का विकास-क्त्रम, उन्नति-अवनति, प्रसन्नता-खिन्नता, मान-अपमान का बहुत कुछ आधार व्यक्ति की शिष्टता एवं शालीनता पर निर्भर करता है। उद्दंड, उच्छृंखल, अशिष्ट व्यवहार से वैयक्तिक एवं सामाजिक, दोनों के ही विकास के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। इसके विपरीत जो सभ्य, शिष्ट एवं उदार होते हैं वे व्यावहारिक कला में दक्ष होते हैं।
व्यक्तिगत जीवन या समाजगत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति, स्थिरता एवं सुख-शाति परस्पर स्नेह, सद्भाव के आधार पर ही अवलंबित है। अत: इस तथ्य के मर्मज्ञ, मनीषी एवं विद्वानों की मान्यता है कि व्यवहार सदैव विनम्र एवं शालीन होना चाहिये। चारो ओर मधुरता, सादगी, सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करना चाहिए। दूसरों के साथ वैसा व्यवहार न करें जैसा हम अपने लिए नहीं चाहते। इसी तथ्य को शिष्टाचार, सभ्यता एवं नागरिकता के नाम से जाना जाता है। यह मानव का सर्वश्रेष्ठ जीवन मूल्य एवं अनमोल संपदा है। जिसमें यह भावना जितनी अधिक होगी वह उतना ही शिष्ट, सभ्य और शालीन माना जाएगा। जीवन-विद्या का धनी व्यक्तिविनम्र होता है। विद्या को जहा विनम्रता की जननी माना गया है वहीं विनम्रता को व्यक्ति संवारने वाली सहयोगिनी कहा गया है। विनय से मिलकर व्यक्तित्व मूल्यवान हो जाता है।

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